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NCERT Solutions for Class X Chhitij Part 2 Hindi Chapter 7- Girija Kumar Mathur

छितिज भाग -2 गिरिजा कुमार माथुर


प्रश्न 1: कवि  ने  कठिन  यथार्थ  के  पूजन  की   बात  क्यों कही  है?
उत्तर:  यथार्थ मनुष्य जीवन के संघर्षों का कड़वा सच है। हम यदि जीवन की कठिनाइयों व दु:खों का सामना न कर उनको अनदेखा करने का प्रयास करेंगे तो हम स्वयं किसी मंजिल को प्राप्त नहीं कर सकते। बीते पलों की स्मृतियों को अपने से चिपकाके रखना और अपने वर्तमान से अंजान हो जाना मनुष्य के लिए मात्र समय की बर्बादी के अलावा और कुछ नहीं है। अपने जीवन में घट रहे कड़वे अनुभवों व मुश्किलों से दृढ़तापूर्वक लड़ना ही मनुष्य का प्रथम कर्त्तव्य है अर्थात् जीवन की कठिनाइयों को यथार्थ भाव से स्वीकार उनसे मुँह न मोड़कर उसके प्रति सकारात्मक भाव से उसका सामना करना चाहिए। तभी स्वयं की भलाई की ओर एक कदम उठाया जा सकता है, नहीं तो सब मिथ्या ही है। इसलिए कवि ने यथार्थ के पूजन की बात कही है।


प्रश्न 2: भाव स्पष्ट कीजिए –
प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
उत्तर:  प्रसंग प्रस्तुत पंक्ति प्रसिद्ध कवि गिरिजाकुमार माथुर द्वारा रचित छाया मत छूना नामक कविता से ली गई है।
भाव भाव यह है कि मनुष्य सदैव प्रभुता व बड़प्पन के कारण अनेकों प्रकार के भ्रम में उलझ जाता है, उसका मन विचलित हो जाता है। जिससे हज़ारों शंकाओ का जन्म होता है। इसलिए उसे इन प्रभुता के फेरे में न पड़कर स्वयं के लिए उचित मार्ग का चयन करना चाहिए। हर प्रकाशमयी (चाँदनी) रात के अंदर काली घनेरी रात छुपी होती है। अर्थात् सुख के बाद दुख का आना तय है। इस सत्य को जानकर स्वयं को तैयार रखना चाहिए। दोनों भावों को समान रुप से जीकर ही हम मार्गदर्शन कर सकते हैं न कि प्रभुता की मृगतृष्णा में फँसकर।


प्रश्न 3: ‘छाया’  शब्द  यहाँ  किस  संदर्भ  में  प्रयुक्त  हुआ  है?  कवि  ने उसे  छूने  के लिए  मना  क्यों  किया  है?
उत्तर:  छाया शब्द से तात्पर्य जीवन की बीती मधुर स्मृतियाँ हैं। कवि के अनुसार हमारे जीवन में सुख व दुख कभी एक समान नहीं रहता परन्तु उनकी मधुर व कड़वी यादें हमारे मस्तिष्क (दिमाग) में स्मृति के रुप में हमेशा सुरक्षित रहती हैं। अपने वर्तमान के कठिन पलों को बीते हुए पलों की स्मृति के साथ जोड़ना हमारे लिए बहुत कष्टपूर्ण हो सकता है। वह मधुर स्मृति हमें कमज़ोर बनाकर हमारे दुख को और भी कष्टदायक बना देती है। इसलिए हमें चाहिए कि उन स्मृतियों को भूलकर अपने वर्तमान की सच्चाई को यथार्थ भाव से स्वीकार कर वर्तमान को भूतकाल से अलग रखें।


प्रश्न 4: कविता  में विशेषण  के  प्रयोग से शब्दों के अर्थ में  विशेष  प्रभाव  पड़ता  है,  जैसे  कठिन  यथार्थ। कविता  में  आए  ऐसे अन्य उदाहरण
छाँटकर  लिखिए  और  यह  भी  लिखिए  कि  इससे  शब्दों  के अर्थ  में  क्या विशिष्टता  पैदा  हुई?
उत्तर:
(1) दुख दूना
(2) जीवित क्षण
(3) सुरंग-सुधियाँ
(4) एक रात कृष्णा
(1) दुख दूना यहाँ दुख दूना में दूना (विशेषण) शब्द के द्वारा दुख की अधिकता व्यक्त की गई है।
(2) जीवित क्षण जीवित (विशेषण) शब्द के द्वारा क्षण को चलयमान अर्थात् उसके जीवंत होने को दिखाया गया है।
(3) सुरंगसुधियाँ सुरंग (विशेषण) शब्द के द्वारा सुधि (यादों) का रंग-बिरंगा होना दर्शाया गया है।
(4) एक रात कृष्णा एक कृष्णा (विशेषण) शब्द द्वारा रात की कालिमा अर्थात् अंधकार को दर्शाया गया है।


प्रश्न 5: ‘मृगतृष्णा’  किसे  कहते  हैं, कविता  में  इसका  प्रयोग  किस  अर्थ में  हुआ  है?
उत्तर:  मृगतृष्णा दो शब्दों से मिलकर बना है मृग व तृष्णा। इसका तात्पर्य है आँखों का भ्रम अर्थात् जब कोई चीज़ वास्तव में न होकर भ्रम की स्थिति बनाए, उसे मृगतृष्णा कहते हैं। इसका प्रयोग कविता में प्रभुता की खोज में भटकने के संदर्भ में हुआ है। इस तृष्णा में फँसकर मनुष्य हिरन की भाँति भ्रम में पड़ा हुआ भटकता रहता है।


प्रश्न 6:’बीती  ताहि  बिसार  दे  आगे  की  सुधि  ले’  यह   भाव  कविता  की  किस  पंक्ति  में  झलकता  है?
उत्तर:  क्या हुआ जो खिला फूल रसबसंत जाने पर?
जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण,
 इन पंक्तियों में ‘बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले’ का भाव झलकता है।


प्रश्न 7: कविता  में व्यक्त दुख के कारणों को स्पष्ट  कीजिए।
उत्तर:
(1) बीती स्मृतियों का स्मरण – मनुष्य बीते सुखों के पलों में खोया रहता है। इससे उसके वर्तमान में चल रहे संघर्ष के क्षणों को काटना दुखदाई होता है क्योंकि वह इसकी तुलना अपनी सुखद स्मृतियों से करता है। जो मनुष्य के लिए कष्टकारी है और दुख का कारण भी।
(2) यश, धन एवं सम्मान की चाह  – मनुष्य अपने जीवन में यश, धन व सम्मान को पाने के लिए प्रयत्नशील रहता है। यदि वह यह सब प्राप्त नहीं कर पाता तो दुखी होकर भटकता रहता है। इन सब की चाह भी उसके दुख का कारण है।
(3) प्रभुता की इच्छा – व्यक्ति प्रभुता या बड़प्पन में उलझकर स्वयं को दुखी करता है।